Janmashtami
जन्माष्टमी
जब पृथ्वी पर कोई दैवीय शक्ति जन्म लेती हैं तो उसको यादगार बनाने के लिए उस दिन को जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, इसी कड़ी में विष्णु भगवान जिनको त्रिलोकीनाथ के नाम से भी जाना जाता है, अपनी लीला करने के लिए द्वापर युग मे श्रीकृष्ण जी के रूप में जन्म लिया और उस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में जाना जाता हैं।
सभी पवित्र शास्त्र बताते हैं कि श्री कृष्ण जी द्वापर युग मे आये और उन्होंने माँ की कोख से जन्म लिया। उनकी माता देवकी और पिता वासुदेव थे जबकि वही दूसरी तरफ पवित्र वेदों में प्रमाण है कि जब पूर्ण परमात्मा अपनी लीला करने आता हैं तो वो सशरीर आते हैं और सशरीर ही जाते हैं और इसका प्रमाण है कि कबीर साहेब जो सशरीर आये थे और सशरीर ही गये, इससे सिद्ध होता है कि कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं।
श्रीकृष्ण जी जो तीन लोको के भगवान है उन्होंने अपने मित्र सुदामा को एक मुट्ठी चावल के बदले में उनका महल बनवा दिया था जबकि कबीर साहेब ने एक रोटी के बदले में तैमूरलंग को 7 पीढ़ी का राज दे दिया था। इससे प्रमाणित होता है कि पूर्ण परमात्मा कुछ भी कर सकते हैं।
सम्पूर्ण महाभारत में श्रीकृष्ण जी पांडवो के मार्गदर्शक होने के साथ साथ ही उनके आध्यात्मिक गुरु भी रहे परन्तु वो उनके महाभारत युद्ध मे हुए पापों का नाश नही कर पाए इसलिए उन्होंने अपने अंतिम समय मे पांडवो से कहा की आप हिमालय में तप करके अपना शरीर नष्ट कर दे।
जबकि पवित्र यजुर्वेद के अध्याय 8 के श्लोक 13 में प्रमाण हैं कि पूर्ण परमात्मा अपने साधक के घोर से घोर पापों का भी नाश कर देता है और यही लीला कबीर साहेब ने कलियुग में दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी का असाध्य जलन का रोग ठीक करके की।
महाभारत में एक प्रकरण आता है जिसमे बताया है कि श्री कृष्ण जी ने द्रौपदी की लाज बचाई थी जबकि सत्य यह है कि उस समय श्रीकृष्ण जी अपनी पत्नी रुक्मणी के साथ चौसर खेल रहे थे और द्रोपदी की लाज बचाने वाले पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही थे जिसका प्रमाण पवित्र गीता जी के अध्याय 15 के श्लोक 17 में मिलता की उत्तम पुरुष तो अन्य ही है जो तीनो लोको में प्रवेश करके सबका भरण पोषण करता है।
सभी पवित्र शास्त्रों में प्रमाण मिलता है कि श्रीकृष्ण जी जो विष्णु भगवान का अवतार हैं जिनका तीन लोको में आधिपत्य है और ये नियमानुसार ही अपनी लीला करते हैं जबकि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जो अनंत ब्रह्मांडो के स्वामी हैं जिनकी समर्थता अनंत हैं।
अनंत कोटि ब्रह्मांड का एक रति नही भार।
सो तो पुरूष कबीर है कुल के सृजनहार।।
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